साउथ इंडिया से ग्लोबल अपील तक: रॉकस्टार डीएसपी, ए.आर. रहमान, अजय-अतुल, एम.एम. कीरवानी, शंकर-एहसान-लॉय — संगीत जगत के वो प्रतिभाएँ जिन्होंने पूरे भारत में संगीत का जादू बिखेरा

साउथ इंडिया से ग्लोबल अपील तक: रॉकस्टार डीएसपी, ए.आर. रहमान, अजय-अतुल, एम.एम. कीरवानी, शंकर-एहसान-लॉय — संगीत जगत के वो प्रतिभाएँ जिन्होंने पूरे भारत में संगीत का जादू बिखेरा
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भारतीय सिनेमा के संगीत जगत में उन संगीतकारों ने एक नई दिशा दी है, जिन्होंने अब क्षेत्रीय सीमाओं को पार करते हुए ऐसी धुनें रची हैं जो कश्मीर से कन्याकुमारी और यहाँ तक कि पूरी दुनिया में गूंजती हैं। ये संगीत के उस्ताद सिर्फ़ गीत ही नहीं रचते। वे ऐसी कल्चरल फेनोमेना रचते हैं जो भाषाओं, पीढ़ियों और भौगोलिक सीमाओं के पार विविध दर्शकों को एक साथ लाती हैं। उनकी रचनाएँ हमारे जीवन का संगीत बन जाती हैं, सोशल मीडिया पर वायरल ट्रेंड हो जाती हैं, और ऐसी अमर धुनें जो भारतीय मनोरंजन के युगों को परिभाषित करती हैं। आइए जानें उन पाँच संगीतकारों के बारे में, जिन्होंने पैन-इंडिया अपील की कला में सचमुच महारत हासिल कर ली है।


रॉकस्टार डीएसपी

‘रॉकस्टार’ केवल उपनाम नहीं है, बल्कि डीएसपी (देवी श्री प्रसाद) की उस क्षमता का प्रमाण है जो पूरे देश को नचाने का दम रखते है। उन्होंने लगाता ऐसी धुनें दी है जो न केवल भाषा की दीवारों को तोड़ती हैं, बल्कि हर पार्टी की जान बन जाती हैं। आर्या, गब्बर सिंह, रंगस्थलम और पुष्पा 1 और 2 जैसे एल्बमों ने तेज़-तर्रार डांस नंबर्स से लेकर दिल को छू लेने वाले रोमांटिक गीतों तक, दोनों की रचना करने की बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाया है।

हालांकि, पुष्पा 1 और 2 एल्बम, विशेष रूप से “ऊ अंतावा ऊ ऊ अंतावा” ने उन्हें एक वैश्विक सुपरस्टार बना दिया। यह गाना सिर्फ़ हिट नहीं हुआ, बल्कि एक संस्कृतिक तूफान बन गया। सोशल मीडिया पर लाखों रील्स, इंटरनेशनल डांस कवर्स और ग्लोबल सेलेब्रिटीज़ की प्रतिक्रियाओं ने इसे इतिहास में दर्ज कर दिया। सामंथा की परफॉर्मेंस और गाने की बीट ने पूरी दुनिया को बता दिया कि भारतीय संगीत में भी ग्लोबल चार्म है।


ए.आर. रहमान

'मद्रास का मोज़ार्ट' कहे जाने वाले ए.आर. रहमान को परिचय की आवश्यकता नहीं। उन्होंने पारंपरिक भारतीय संगीत को वैश्विक शैलियों के साथ इस तरह मिलाया कि एक अद्वितीय संगीत शैली उभरी। रोज़ा में उनके अभूतपूर्व काम ने एक संगीत प्रतिभा के आगमन की घोषणा की, जबकि बॉम्बे और दिल से ने उनकी पैन इंडिया अपील को साबित किया। उनका शानदार रचना 'लगान' और विश्व स्तर पर प्रशंसित 'स्लमडॉग मिलियनेयर' साउंडट्रैक ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने वाले संगीतकार के रूप में स्थापित किया। "जय हो", "वन्दे मातरम्", और "कुन फाया कुन" जैसे गीत दुनिया भर में बसे भारतीयों के दिलों में बसे हैं। रहमान ने ये साबित किया है कि संगीत में गहराई और लोकप्रियता एक साथ निभाई जा सकती है।


एम.एम. कीरावनी

आरआरआर द्वारा दुनिया का ध्यान आकर्षित करने और 'नाटू नाटू' के लिए अकादमी पुरस्कार और गोल्डन ग्लोब जीतने से पहले ही, एम.एम. कीरावणी दक्षिण भारतीय सिनेमा में एक प्रतिष्ठित नाम थे। निर्देशक एस.एस. राजामौली के साथ उनके सहयोग ने भारतीय सिनेमा के इतिहास के कुछ सबसे यादगार साउंडट्रैक तैयार किए हैं। मगधीरा, ईगा और बाहुबली जैसे एल्बमों ने महाकाव्य, ऑर्केस्ट्रा रचनाएँ रचने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित किया। 'नाटू नाटू' की उर्जावान बीट्स और उल्लासमयी भावनाएं इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिट बना गईं। साहोरे बाहुबली और हंसा नावा जैसे गीतों ने भारतीय सिनेमा में भव्यता और भावनात्मक गहराई का मानक स्थापित किया है।


शंकर-एहसान-लॉय

यह तिकड़ी भारतीय शास्त्रीय संगीत, रॉक और इलेक्ट्रॉनिक संगीत का अद्भुत संगम है। शंकर महादेवन का शास्त्रीय ज्ञान, एहसान नूरानी की रॉक झलक और लॉय मेंडोंसा की आधुनिकता मिलकर एक ऐसा संगीत रचते हैं जो हर दिल को छू जाए।

दिल चाहता है ने युवा संगीत की परिभाषा बदली। जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, रॉक ऑन!!, कल हो ना हो, कजरा रे और गल्लां गुड़ियां जैसे गीतों ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। "तारे ज़मीन पर" और "माई नेम इज़ ख़ान" के लिए तिकड़ी की रचनाएँ उनकी भावनात्मक विविधता को दर्शाती हैं, यह साबित करती हैं कि वे समान कुशलता से उत्सव गीत और आत्मा को झकझोर देने वाली धुनें, दोनों रच सकते हैं। "कंदुकोंदैन कंदुकोंदैन" और "अलाईपायुथे" जैसे एल्बमों के साथ दक्षिण सिनेमा में उनका काम, विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच सहजता से ढलने की उनकी क्षमता को उजागर करता है।


अजय-अतुल

मराठी संगीत की शान, अजय-अतुल ने अपनी जड़ों से जुड़े रहकर पैन-इंडिया पहचान बनाई। नटरंग और सैराट ने उन्हें एक दमदार नाम बनाया। सैराट का “झिंगाट” तो इतना हिट हुआ कि बॉलीवुड में धड़क में इसका रीमेक बना। अग्निपथ का “अभी मुझ में कहीं” और “देवा श्री गणेशा” जैसे गीतों ने बॉलीवुड में उनकी पकड़ को पुख्ता किया। तान्हाजी जैसी फिल्मों और हाल की क्षेत्रीय फिल्मों में उनके गीतों ने यह सिद्ध किया कि वे शहरी और ग्रामीण दोनों दर्शकों की नब्ज़ पहचानते हैं। और ऐसा संगीत रचते हैं जो देश की विविध सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाता है।


ये पाँच संगीत महारथी भारतीय फ़िल्म संगीत के क्षेत्रीय से लेकर अखिल भारतीय और यहाँ तक कि वैश्विक आकर्षण तक के विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि महान संगीत की कोई सीमा नहीं होती, चाहे वह भाषागत, सांस्कृतिक या भौगोलिक हो। उनकी रचनाएँ न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि साझा सांस्कृतिक अनुभवों को जन्म देती हैं जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधते हैं। डिजिटल कनेक्टिविटी और सोशल मीडिया की दुनिया में ये संगीतकार वो सितारे हैं जिन्होंने संगीत को एक भावनात्मक, सार्वभौमिक भाषा बना दिया है। जैसे-जैसे भारतीय सिनेमा वैश्विक पहचान हासिल कर रहा है, ये संगीत जगत के दिग्गज हमारे मनोरंजन इंडस्ट्री की धड़कन बने हुए हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि हर कहानी को एक बेहतरीन साउंडट्रैक के साथ सुनाया जाए।

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