'नायक' को हुए 24 साल: अनिल कपूर ने अपना सबसे प्रभावशाली किरदार को किया याद

नायक को हुए 24 साल: अनिल कपूर ने अपना सबसे प्रभावशाली किरदार को किया याद
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सिनेमा आइकन अनिल कपूर ने अपने शानदार करियर में कई यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं, लेकिन नायक: द रियल हीरो में शिवाजी राव का किरदार ऐसा था, जिसने न केवल दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी, बल्कि भारतीय सिनेमा में एक ऐतिहासिक मोड़ भी लाया। 2001 में रिलीज़ हुई और दूरदर्शी फिल्म-मेकर शंकर द्वारा निर्देशित, इस फिल्म ने अनिल कपूर को न केवल अपनी स्टार पावर, बल्कि आम आदमी की आवाज़ को पूरे विश्वास और जोश के साथ व्यक्त करने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित करने का एक मंच दिया।


जैसे-जैसे नायक 24 साल पूरे कर रहा है, इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही जीवंत है — यह एक राजनीतिक थ्रिलर थी, जो सांस्कृतिक पहचान बन गई, जिसने भ्रष्टाचार, जवाबदेही और बदलाव की संभावनाओं को लेकर राष्ट्रीय संवाद छेड़ दिया।


सोशल मीडिया पर अनिल कपूर ने लिखा:

"कुछ भूमिकाएँ आपको परिभाषित करती हैं। नायक उनमें से एक थी। ❤️

पहले ये रोल आमिर और शाहरुख को ऑफर हुआ था, लेकिन मुझे पता था कि ये किरदार मुझे जीना है… और मैं शुक्रगुज़ार हूँ शंकर सर का कि उन्होंने मुझ पर विश्वास किया। 🙏

मैं हमेशा शाहरुख की उस बात को संजोकर रखूँगा जो उन्होंने मंच से कही थी: ‘ये रोल अनिल के लिए ही बना था।’ ऐसे पल हमेशा के लिए दिल में बस जाते हैं। #24YearsOfNayak"


अनिल कपूर की दमदार भाषणों से लेकर उस मशहूर कीचड़ वाली लड़ाई तक, हर दृश्य में उन्होंने शिवाजी राव के किरदार को एक अलग जज़्बा और सहजता के साथ निभाया। यही वजह है कि जब शाहरुख खान जैसे सुपरस्टार ने कहा कि "यह रोल अनिल के लिए ही बना था," तो यह बात अपने आप में फिल्म की विरासत को और मज़बूत कर देती है।


फिल्म की बॉक्स ऑफिस सफलता से आगे बढ़कर नायक आज एक सांस्कृतिक प्रतीक बन चुकी है। इसमें उठाए गए सवाल — जवाबदेही, ईमानदारी और प्रशासन — आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, और यह फिल्म सामाजिक बहसों, राजनीतिक चर्चाओं और फैंस की यादों में लगातार जीवित है।


नायक में निडर शिवाजी राव की भूमिका से लेकर आज के समय में उनके द्वारा निभाए जा रहे विविध और चुनौतीपूर्ण किरदारों तक, अनिल कपूर की यात्रा परिवर्तन और दृढ़ता की कहानी है। अगर 24 साल पहले 'नायक' ने उन्हें परिभाषित किया था, तो उनकी आगामी फ़िल्में भारतीय सिनेमा के सबसे स्थायी सिनेमा आइकन के रूप में उनकी जगह को और मजबूत करती हैं — चाहे वह सुरेश त्रिवेणी की "सुबेदार" हो — जिसमें एक गहराई और भावनात्मक परतों से भरा किरदार देखने को मिलेगा — या फिर उनका यशराज फिल्म्स के स्पाई यूनिवर्स में तेज़ और ज़ोरदार एंट्री, या 'NTR नील' के साथ उनकी पैन-इंडिया कोलैबोरेशन, जो भारतीय सिनेमा के स्तर को और ऊँचाइयों पर ले जाने वाली है — यह सब साबित करता है कि अनिल कपूर इतिहास को दोहराने में नहीं, बल्कि भविष्य को आकार देने में लगे हैं।


नायक की सिल्वर जुबली के इस अवसर पर एक बात साफ़ है:

अनिल कपूर केवल अतीत को याद नहीं कर रहे हैं — वे भारतीय सिनेमा का भविष्य को आकार दे रहे हैं।

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